tag:blogger.com,1999:blog-54157850729784872352024-02-20T17:10:53.062-08:00में , मेरी तन्हाई, कुछ बीते लम्हे , कागज के कुछ टुकड़े को समेटे दो पंक्तिया . . .<a href="http://swargvibha.in/topsites/"><img src="http://swargvibha.in/topsites/button.php?u=sajanmurarka" alt="Topsites" border="0"></a>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.comBlogger291125tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-59834596251925432932015-05-14T07:46:00.002-07:002015-05-14T07:46:55.322-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554aaed437571f29195828">
तब तुम्हारे साथ का नशा था<br /> अब तुम्हारे दीदार का नशा है<br /> तब तुम्हारे प्यार में मशगुल था<br /> अब तुम्हारे प्यार के लिये मशगुल हैं<br /> तब हमने तुम्हे चाँद सा देखा था<span class="text_exposed_show"><br /> अब चाँद में सिर्फ तुम्हे देखते हैं<br /> तब तुम्हारी अदायों पर मरता था<br /> अब तुम्हारी अनदेखी पर मरते हैं<br /> तब प्यार का इजहार करने जीता था<br /> अब प्यार के इजहार के लिये जीते हैं<br /> तब वक़्त का गुजरना ना गंवार था<br /> अब वक़्त का ना गुजरना ना गंवार हैं<br /> तब मुलाकात को तरसता था<br /> अब भी मुलाकात को तरसते हैं<br /> तब तुम्हारे चाहत में दीवाना था<br /> अब तुम्हारे चाहत में दीवाना हैं<br /> तब रात की तन्हाई में याद करता था<br /> अब रात की तन्हाई में याद करते हैं<br /> तब तेरी यादें मेरे जीने का सहारा था<br /> अब तेरी यादें मेरे जीने का सहारा हैं<br /> तब और अब प्यार तो प्यार ही था<br /> अब और तब प्यार तो प्यार ही हैं<br /> तब तुम मेरी थी, मैं तुम्हारा था<br /> अब तुम तुम्हारी, पर मेरा तुम्हारा हैं</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
</div>
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<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554aaed43a002c54205983">
जिंदगी वीरान है!<br /> पर जीने की आरज़ू है;<br /> दिल मे ज़ख्म गहरे है;<br /> पर दर्द चहरे से छुपा है;<br /> कसूर चाहत का है;<span class="text_exposed_show"><br /> पर असर नफ़रत का है;<br /> दीदार को तरसते है;<br /> पर उन्हें फ़ुरसत कंहा है?<br /> प्यारा सा दोस्ताना है;<br /> पर हम बेगाने-गैर से है!<br /> सासों मे यों ही धड्कन है;<br /> पर दिल उनके पास महफूज़ है|<br /> हमारे दरवाज़े उनके लिए खुले है;<br /> पर उनकी खिड़की पे भी ताले है!<br /> मेरा प्यार तो ज़िन्दा है,<br /> पर वह प्यार से भी महरूम है; <br /> उनके मन मे लम्बी दूरियां है;<br /> पर हमारे दिल मे नज़दीकीयां है|<br /> हमे प्यार से बेहिसाब फक्र है,<br /> पर उन्हें प्यार से शर्मसार डर है;<br /> अजब दास्ताँ दिलवर ज़ालिम है ,<br /> पर सासें फ़िर भी उनके लिए बची हैं,<br /> क्या करें शिकायत, सोच मे हैरानी है!<br /> शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!<br /> जीने की हर आरज़ू जब उनके कैद है;<br /> मुस्कुराते लब है और आँखे नम हैं!</span><br />
<div class="text_exposed_show">
शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!!<br />
<br />
सजन </div>
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<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554aaed43d1b7399201791">
पत्थर की चट्टानों को चीर कर निकलता है दरिया,<br /> "आह" की भी है खामोशिया,सनम पत्थर दिल से<br />
समंदर से मिलने को बेताब दरिया दौढ़ लगाती ;<br /> मेरी जान की दुश्मन, उठकर चली जाती पास से ,<br />
<div class="text_exposed_show">
समंदर मे भी चाँद के आकर्षण से ज्वार- भाटा आता,<br /> ऐसी क्या रुश्बाईयां, वह पर्दा नहीं ह्ठाती खिढ़की से |<br />
पर्दा-नशीं थे नहीं वह, हुश्न की चर्चा सरे बाजार होती है ;<br /> सरेआम उनका जलवा बाज़ नहीं कत्ले-आम मचाने से !<br />
कत्तल भी हो जायें, रजो-गम नहीं, दीदार तो होता है ,<br /> अफ़सोस किसी भी दौर का नहीं, रहे यादें दीदार की महफूज से ;<br />
मेरे दिलवर की शोख़ी,खिलती कलियों की नक्श- पहचान है,<br /> उनकी सादगी कलियों को बख्शा है रहम-ऐ-अदब के तकाज़े से ;<br />
सादगी की यह मूरत, फूलों सी मासूमियत का नाकव पहेने है ;<br /> लरज़ता दिल,रंगीनियाँ छुपी है सीने के अन्दर, मेरे दिलवर से !<br />
वह जहेन में फरेब का नश्तर चलाती ,मासूमियत की सादगी से,<br /> मुहब्बत की सर्द चट्टानों को पिघला कर आग का समंदर बनाने से ;<br />
हक़ीक़त में बियोग कि आग, बर्फ बनके, चोट पर लगा रही मरहम !<br /> जिस्म के अन्दर पिघल रही बर्फ, अश्क बन, बहती रहती है हरदम से |<br />
नफरत न होना बुज़दिली की बात नहीं, न है कोई शिकवा वेबफाई से,<br /> मालूम मुझे खोखली दीवाल पर टीका यह बेरुखी का किल्ला वहम से ,<br />
कितने अर्स काबीज रखेगी वह जिद्द खुद के बेकाबू दिल की धढ़कन पे <br /> हमारी भी जिद्द है,मरते दम तक, यों ही धढ़के-उन के दिल मे यादों से<br />
<br />
सजन </div>
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जब वह शर्मसार होते हैं; तो चहेरे पे गुलाब होते हैं .<br /> आँखों मे शोख़ी,होटों मे मुस्कान;दिल मे तूफ़ान होते हैं .<br />
जब वह निहारें तिरछी नज़र से;दिल तार-तार होते हैं .<br /> क़सम खुदा की, जन्नत सी नसीब,जब वह मेहरबाँ होते हैं .<br />
<div class="text_exposed_show">
काज़ल भरे मद-मस्त कजरारे नयन; बादल से होते हैं .<br /> कभी पलक झपकाना, कभी मुस्कुराना;अन्दर तूफान होते हैं .<br />
मिलन की चाह मे ख़ुशियों से दिल तो बे-लगाम होते हैं .<br /> अरमां हरदम तड़पते सीने मे;लब्ज़ लब्बो पे बेजुवां होते हैं .<br />
इश्क़ छु पाया नहीं जा सकता;अदाओं से खुद बयाँ होते हैं .<br /> इश्क़ मे जुनून इतना;मर-मिट जाने को भी रज़ामन्द होते हैं .<br />
परवाने को लुभाने शमा का ज़लवा रोशन सिंगार होते है <br /> नसीहत काम न आये,बेचैन दिल मे बिरह से ज़ख्म होते है;<br />
नादान दिल मे मिलन की फ़ितरत,मुश्किल से रुके होते है .<br /> जज़्बा पत्थर सा;ज़ेहन मे सिर्फ़ उनसे मिलन के ख्याल होते है<br />
<br />
सजन </div>
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<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554aafb61a2d7457756914">
अजन्ता के मूर्त-रूप <br />
पाषाण शिला मे सजीव शिल्प अत्यन्त निराला;<br /> अजन्ता के मूर्त-रूप मे प्रकट नारी-सौन्दर्य कला,<br /> शिल्पी के अन्तर भाव छेनीसे निखर निखर चला,<span class="text_exposed_show"><br /> चाहत थी या नहीं राजकीय, प्रेमातुर से रूप मिला!<br /> नायिका की सुंदरता,रूप-अपरूप,अंग-अंग मे खिला,<br /> कहे क्या, शब्द पाषाण, मुखरित हो गई पाषाण शिला;</span><br />
<div class="text_exposed_show">
जब देखता हूँ नजर भर सासें रुक सी जाती,<br /> परी या नदी कोई जैसे चले इतराती-बलखाती;<br /> सर से नख,यौवन भार से इठलाती-लज्जाती,<br /> अल्लड़पन या चंचल-चित्त से लहरों सी लहराती;<br /> यौवनमय,सुन्दर- सलोने देह की छटा बिखराती,<br /> कामदेव की कल्पना सी नायिका, सजीव हो जाती!<br />
शेव्त उदर-जल राशि सम, नाभी ऐसी पड़ी जैसे भँवर,<br /> कटि-तट पर नागिन,-केश-लतायें जैसे घटा छाय अम्बर, <br /> कचनार से अधर पर जैसे फूलों का रस गया हो ठहर,<br /> लाली उसमे जैसे रसमय दाने फैलाए फ़ैली हो अनार ;<br /> सीपों मे बंद मोती से नयन, काज़ल से बचे जो नज़र ! <br /> नाजुकता भरा स्पर्श,गोरी गोरी बाँहों से करे प्रेम पुकार;<br />
दाँतों की सफेदी,धवल शेव्त रंग की दे अनुभूति !<br /> घनकेश पिंडली छूता,नागिन कोई सा प्रतिभाति ;<br /> उड़ते आँचल,मधु-कलश वक्ष पर,सुध खो जाती ,<br /> पतली सी कमर लचके जैसे हवा चली बलखाती ;<br /> पैरों के घुंघरू की पैंजनिया लय-मय धुन सूनाती !<br /> रूप गर्विता की सुन्दरता से अप्सरा भी शरमाती |<br />
वस्त्र जो जाय फ़िसल-फ़िसल तंग कंचुकी से,<br /> अंग-अंग की दिखे झलक गुलाब की पंखुडियों जैसे,<br /> नज़र मटकाए,बल खाये,जब देख इतराये पलकों से; <br /> खिली हो कली,सुघन्ध फैलाये, पुष्प बनने की चाह्त से, <br /> इन्द्रधनुष कोई आकर लिपट गया हो गोरी के बदन से;<br /> नख से शिखर तक,जब अंग देखता हूँ तेरा हर नजर से !<br />
नथुनों मे भर गहरे सासों का निशब्द तूफान;<br /> टूट जाता है सब्र,मधु पीने मधुकर है परेशान,<br /> कोमल कपोल,पयोधर वक्ष,कटि सुन्दर सुजान;<br /> उद्भाषित,उन्मिलित,उन्मुक्त मिलन आह्वान!<br /> रती-नायिका,शृंगारिका, कहाँ वस्त्र का ध्यान |<br /> अजन्ता के मूर्त-रूप मे नारी-सौन्दर्य महान !<br />
<br />
सजन </div>
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हमारे दरवाज़े उनके लिए खुले है;<br /> पर उनकी खिड़की पे भी ताले है!</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-9170062870302351142015-05-14T07:36:00.001-07:002015-05-14T07:36:15.560-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कभी हंसाती, कभी रुलाती, कितने गुल खिलती हैं<br /> अज़ब दास्ताँ है भाग्य की ,फिर भी इसी की चाहत हैं<br /> तदबीर करें कियों कोई ? भाग्य पर जब चलता है<br /> तकदीर की चले जो तदबीर क्<span class="text_exposed_show">या काम करता है <br /> कोई जनम से भोगे सुख,कर्म की जरुरत कंहा होती है<br /> कोई करम के बाद सोये भूखा-नंगा, भाग्य कंहा होता है<br /> यह पहेली समझ ना आई, मन मेरा सवाल करता है .<br /> कर्म प्रधान या भाग्य महान, कैसे इसका निदान होता है<br /> सन्देशा मिला "गीता"से , फल की आशा ब्यर्थ है ;<br /> कर्म को दिल से लगाकर, विधि का निर्णय पाता है<br /> मिले ग़र तकदीर -तदवीर से, नतीजा आसन होता है<br /> अगर मिल गई तदवीर-तकदीर से काम आसान होता है</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-84600263657373543112015-05-14T07:34:00.002-07:002015-05-14T07:34:54.060-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="mtm _5pco" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554ab07a83cc1301077477">
पुत्र जनम शुभ, कन्या जनम कष्टकारी,<br /> करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी<br /> न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी<br /> ध्यान दीजे, संतान सकल, सम प्रेम अधिकारी<br />
<div class="text_exposed_show">
शीतल वचन, कोमल मन, स्नेह सुख परिभाषी<br /> मंगल मूरत, नित सेवत, सत चित, प्रकृती से दासी<br /> निसदिन बोलत, प्रेम सहित डोलत,धरत सुखराशी<br /> कबंहूँ नहीं मांगत, न कबंहूँ कठोर संकल्प फरमासी<br />
करुनामय,रसमय, लछमी रूपा आनंद सुधा बरसाती<br /> कोयल सी कुंजन करत, तितली सी मंडराती<br /> सृष्टि की अधिकारी, सेवक मान, जग में जी पाती<br /> कल्पतरु सी दाता,अपने दुःख अपने में समाती<br />
कुंठित,भयभीत, लज्जित सा जीवन परे<br /> मात-पिता,अग्रज-अनुज सब अनुशासित करे<br /> जान कष्ट, शांत भाव-सदा ही धीरज धरे<br /> प्रतिपालक जननी तू जब संतान रूप धरे<br />
विचित्र रचना, भ्रमित माया जगने रच राखी<br /> पराया धन ठहराये, जो धन दुःख में सहभागी<br /> कन्या-दान अति महान कहे सब अनुरागी<br /> फिर भी मांगे धन-दौलत, कन्या बिचारी अभागी<br />
<br />
सजन </div>
</div>
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जैसे सूरज पिघलकर बन गया हो लाल अंगार<br /> दिल जैसे लू-लोहान शाम का डूबता रबि<br /> मन हुवा सुनहरा-सा बहे पिघला-पिघला-सा<br /> कुछ धुँधला धुँधला कुछ उजला-उजला<br /> चमकते भाव छंदों <span class="text_exposed_show">में सोच के अंधेरो में<br /> महकाकर सांसों को चुभती है केवल दिल में<br /> वही डंक मारकर कविता हो जाती है।<br /> रफ़्तार में शामिल गर्म सांसों का धुआ<br /> जो उठता चारों पर दिखता कहां, जो देख पाते<br /> और समझ पाते, उन्हें ही आते ख़याल नये<br /> इन ख़याल को समझे और कविता हो जाती है</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-85621642518422155992015-05-14T07:32:00.002-07:002015-05-14T07:32:42.052-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
खोखली ही चाहे उल्फतें, कुछ मगजमारी कीजिये;<br /> इक नज़्म "मोहब्बत" की गम मिटाने को कीजिये;<br /> दर्दे-ए-बयाँ हक़ीकत खुल कर मुँह जबानी कीजिये;<br /> सोचिये कुछ,भरिये आहेँ,प्यारी-प्यारी बात कीजिये;<br /> मसला ज़ज़्बात का हल-कोशीश-ए-अंज़ाम कीजिये;<span class="text_exposed_show"><br /> पत्थरों के शहर में महफूज़ रखना,इंतज़ाम कीजिये;<br /> कांच से ज़ज़्बात,जज़्बा हो हिफ़ाज़त पत्थरों मे कीजिये <br /> खेले ज़ज़्बात से,मुस्करा के,खौफ़ की बजह तो कीजिये <br /> वेबजह सही कुछ मेहरबानी ग़ुरबत को मिटाने कीजिये</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-21077517941170471502015-05-14T07:31:00.002-07:002015-05-14T07:31:44.088-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नज़रों से बचे, नज़रें मिलाकर,नज़रें चुराकर करे इशारा,<br /> नज़रों से गिरे,नज़रें उठाये,नज़र से नज़र का खेल सारा<br />
<br />
सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-84282531816354835242015-05-14T07:29:00.001-07:002015-05-14T07:29:32.661-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सभी समस्याओं के सुन्दरता पूर्वक समाधान "हम" में निहित है।<br /> सभी समस्याओं के सुन्दरता पूर्वक "अ"समाधान "अ ""हम" में निहित है।<br />
<br />
सजन </div>
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रोक नहीं सकती बधाये उन का रास्ता<br /> जब लगन और ,है,सिर्फ मंजिल से वास्ता<br />
<br />
सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-80600147819081569212015-05-14T07:26:00.002-07:002015-05-14T07:26:55.504-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भोर की लाली छाई,स्वर्णिम आभा का प्रकाश,<br /> ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,<br /> यह उलझे बालों की लटे, मनमें महके सुवास<br /> मिलन के मधुरिम पल, चाहत में चातक सी आश<br /> कंपते अधरों में प्रेम-रस की अनबुझी प्यास<span class="text_exposed_show"><br /> तृप्ती से अतृप्त तन में देह-गंध का मदहोश वास<br /> झरते पसीनो की बूंदों में सिंगार का उल्लास<br /> सिहरीत लज्जावती बेल का सुखद नागपाश<br /> इन्द्र-धनुष सा सतरंगी मिलन का सहवास<br /> झिम-झिम सा बरसता "प्यार" जैसे मधुमास<br /> धीमि-धीमि सांसो में तेज आंधी का बिकास<br /> तूफान उठा हो जैसे रप्तारों में बिखरे श्वांस<br /> पाने की ज्वाला में सर्वस्व देने का अभिलाष<br /> समर्पण और मिलन का है मौन यह परिभाष</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन <br />
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-45720062534945259312015-05-14T07:25:00.002-07:002015-05-14T07:25:57.887-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कचनार से अधर पर जैसे फूलों का रस गया हो ठहर,<br /> लाली उसमे जैसे रसमय दाने फैलाए फ़ैली हो अनार ;<br /> सीपों मे बंद मोती से नयन, काज़ल से बचे जो नज़र ! <br /> नाजुकता भरा स्पर्श,गोरी गोरी बाँहों से करे प्रेम पुकार<br />
<br />
<br />
सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-37197461222609519062015-05-14T07:22:00.002-07:002015-05-14T07:22:38.458-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बेजान सूनी आँखें, सुख गये आँसू,नज़र धुँधलाते<br /> दाँत कसकर भींचे, "वे" भूख को अंतढ़ीयों में दबाते<br /> "वे" देते अभिशाप उस ख़ुदा को जिस कारन "वे" रोते<br /> भूख से मरते,और आसमान तले जाड़ों में खुले सोते<br /> उम्मीदें बाँध, दुआएँ कीं, पुकारा व्यर्थ ही सोते-जागते<span class="text_exposed_show"><br /> "वो" करे उपहास,बढ़ाया दर्द-पिछले पाप का फल बताते<br /> ग़रीब-दुखियों के दुख को सुनमें उबासियाँ "वो " लेते<br /> हमारे"वो" "पांच-सितारा" में शान से बर्गर-पिज्जा खाते<br /> भूख किया है ? हमारे "वो" अगर तरीके से जान-जाते<br /> दुष्टता-बुराई ही है पनपी "उनमे", नैतिकता को मिटाते<br /> दिन-रात चुन रहे सर्वनाश, अपने "वो" अभिशाप जुटाते<br /> पाप-पुण्य की माने तो "वो" गन्दगी-खोर कीड़े से मुटाते<br /> बजा रहे हैं द्वन्द का बिगुल अपने "वो" असमानता फैलाते<br /> भूख किया है, हमारे "वो" अगर तरीके से जान-जाते ?</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-60430562545515181922015-05-14T07:18:00.000-07:002015-05-14T07:18:11.039-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लगे अन्दर कुछ खिसके धीरे से<br /> दिमाग जब सुलगता गुस्से से<br /> क्रोध का नतीजा अफ़सोस से<br /> रोकिये इसे अपनी सूझ-बुझ से<br /> जब होता कोई अवसाद मन में<span class="text_exposed_show"><br /> परेशानिया रोजमरा जिन्दगी में<br /> सूझे न आसन राह सुलझाने में<br /> जवाब इसका मिले शांती-धैर्य में<br /> अन्दर कुछ उछले जोर से<br /> दिल जब महकता खुशी से<br /> संतुस्टी का नतीजा गुमान से<br /> रोकिये इसे सोच-समझ से<br /> जब होता फैसला जल्दबाजी में<br /> बिन अन्जाम भले और बुरे में<br /> पछताये जब डोर नहीं हाथों में<br /> जवाब इसका मिले पहले सोच में<br /> अन्दर कुछ होता चेतना से<br /> मन जब कहता आत्मग्लानी से<br /> किये का नतीजा जाने-अनजाने से<br /> रोकिये कदम फिर इसे दोहराने से</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-71449204448839451352015-05-14T07:16:00.002-07:002015-05-14T07:16:42.462-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554ab4a971992517742127">
दर्दे-ऐ-दिल बताना है<br />
खुद की बेरुखी पर<br /> वह अगर एक बूंद आंसू बहाते<br /> कसम खुदा की<span class="text_exposed_show"><br /> हम गम का सागर पी जाते</span><br />
<div class="text_exposed_show">
खुद की वेवफाई पर<br /> वह अगर एक "आह" जताते<br /> कसम खुदा की<br /> हम शर-शैया पर भी लेट जाते<br />
खुद की अनदेखी पर<br /> वह अगर एक नज़र नजराते<br /> कसम खुदा की<br /> हम मरते दम तक राह तकाते<br />
खुद के जुल्मी सितम पर<br /> वह अगर एक अफ़सोस जताते<br /> कसम खुदा की<br /> हम आग के दरिया में कूद जाते<br />
मेरा जूनून नहीं,मेरा सरुर है<br /> ना माकूल इम्तिहान,अब्बल आना है<br /> पाने का सवाल नहीं, अपना बनाना है<br /> शिकायत उनसे नहीं,दर्दे-ऐ-दिल बताना है<br />
सजन<br />
</div>
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नारी की छबी न्यारी<br />
शीतल वचन, कोमल मन, स्नेह सुख परिभाषी<br /> मंगल मूरत, नित सेवत, सत चित, प्रकृती से दासी<br /> निसदिन सेवत, प्रेम सहित डोलत,करत सुखराशी<span class="text_exposed_show"><br /> कबंहूँ नहीं मांगत, न कबंहूँ कठोर संकल्प फरमासी</span><br />
<div class="text_exposed_show">
करुनामय,रसमय, लछमी रूपा आनंद सुधा बरसाती<br /> कोयल सी कुंजन करत, तितली सी मंडराती<br /> सृष्टि की अधिकारी, सेवक मान, जग में जी पाती<br /> कल्पतरु सी दाता,अपने दुःख अपने में समाती<br />
कुंठित,भयभीत, लज्जित सा जीवन परे<br /> मात-पिता,अग्रज-अनुज सब अनुशासित करे<br /> जान कष्ट, शांत भाव-सदा ही धीरज धरे<br />
विचित्र रचना, भ्रमित माया जगने रच राखी<br /> पराया धन ठहराये, जो धन दुःख में सहभागी<br /> करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी<br /> न जानत, जननी रूप नारी की छबी न्यारी<br />
<br />
सजन <br />
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-16736820916427074962015-05-14T07:13:00.002-07:002015-05-14T07:13:38.067-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यूँ भी क्या कम ग़म थे<br /> दामन में हमारे<br /> ज़िन्दगी गुज़ार लेंगे<br /> तुम्हारे यादों के सहारे....<br /> इस कशीश में जो जलन है<span class="text_exposed_show"><br /> मेरी चाहत का प्रतिफलन है<br /> अब चाहे जिन्दगी दे या मौत <br /> ज़िन्दगी गुज़ार लेंगे<br /> तुम्हारे यादों के सहारे....</span><br />
<br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-26843815040644500802015-05-14T07:12:00.002-07:002015-05-14T07:12:31.641-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554ab652c66e4803091367">
यादो के झुरमुट से कोई पत्ता,<br /> उड़ते हुवे आया;<br /> उस पर कुछ धुल जमी थी,<br /> मन है कि मचल पड़ा!<br /> पुरानी स्मृतिया,<span class="text_exposed_show"><br /> आतुर आँख देखे उसे,<br /> न जाने कैसी कैसी याद,<br /> घुमे नज़र मे दिन पुराने,<br /> एक दुसरे का साथ निभाना!<br /> जीने-मरने की कसम,<br /> घर बसाने का सपना,<br /> जानना चाहता कि-<br /> बिछड़ने के बाद,<br /> क्या था जो जोड़े रखा हमे|<br /> मन आज भी तड़पता,<br /> अकेले होकर कभी कभी,<br /> सब के बीच तलाश करता!<br /> पुराने दिन कि -<br /> अटखेलियाँ करती परेशान,<br /> रिमझिम बारिस मे भीगना!<br /> कानो मे गुनगुनाये पैजनीया,<br /> खिलखिलाना,हँसना-हंसाना!<br /> और कितनी कितनी बातें,<br /> लिपट पड़ती बांहों में,<br /> बच नहीं सकता उस से,<br /> अनगिनत प्रश्न-सताये,<br /> यादें सिकुड़ कर,<br /> सिमट कर दिल मे,<br /> साथ रहती परछाईं सी!<br /> कब किस बहाने उसका,<br /> धुँध सा फैलाव,फैलता मन मे!<br /> मैं हैरान निगाहों से देखता;<br /> यादो के झुरमुट से कोई पत्ता!!</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-47969576962013083322015-05-14T07:11:00.000-07:002015-05-14T07:11:05.920-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पड़े-पड़े ,गुमसुम से चुप-चाप<br /> बीते हुवे कल में खो कर,<br /> सोच में ढूंढता हूँ अपने अछे-बुरे दिन<br /> ऊब-से, किसी-किसी मौके पे<br /> केवल कुरेद लिया करता हूँ अपने-आप<span class="text_exposed_show"><br /> दूर-दूर तक एक धुंधलापन छा जाता,<br /> सहसा सोच की आंधी झकझोर जाती<br /> अपने मन के आईने के सामने,<br /> आदमखोर सी खुद की आकृतियां<br /> और हिंसक पशुता सी स्वार्थ की लालसा<br /> अधिक गहरा जाता बेशर्मी का तमाशा<br /> बजता बिगुल अंतर्मन में, फिर खामोशी-सी,<br /> सोच,कांप कर सिहर-सिहर जाता ।<br /> अच्छाई-बुराई और विवेक की लढ़ाई<br /> क्या जाने क्या सोच अचानक रुक जाता<br /> चढा कोहिनी,हाथ पैर घुमाकर अपनी बुद्धी से<br /> अधीर हो जाता हूँ सब कुछ सही ठहराने<br /> धब्बे पडते हुए चरित्र में, झूठ की चादर<br /> अपनी थाह नाप कर,समझने=समझाने<br /> लौट जाता हूँ वापस, वही राह में,<br /> यह बदनुमा दाग, पेढ़ के तने जैसा बस रह जाता -<br /> खुला विवेक और मन सूना-सूना सा<br /> पानी=पानी होकर, निश्चुप, विवश<br /> वापस चतुर दिमाग से हार जाता<br /> अब रात आ गई, ठंडी हवा हो गई -<br /> मौन था, मन भटक रहा था!<br /> यादों के विशाल बरगद की छाया थी,मैं था,<br /> आगे से अनजान,समेटे हुए मेरे अतीत , <br /> मैं इस अंतरद्वन्द को गहराई में जाकर<br /> खोज निकाल करूँगा उसे जरुर बाहर</span><br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> </span>सजन </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-59605398796248588832015-05-14T07:07:00.003-07:002015-05-14T07:07:53.475-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="mtm _5pco" data-ft="{"tn":"K"}">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_5554ab86f1c761015914175">
प्यारा बंधन <br /> हम दोनों यारों मे<br /> .............................गरम चाय<br />
स्पर्श भावों के<span class="text_exposed_show"><br /> रोमांच शरीर पे<br /> .............................वाष्पित चाय</span><br />
<div class="text_exposed_show">
लिखे लेख से <br /> एक ही विचार मे<br /> ............................अनुप्त चाय<br />
मन तृप्ती से<br /> प्रशन्न चहरे से <br /> ............................ठंडाई चाय<br />
ठंडी चुप्पी पे<br /> तूफान ह्रदय के<br /> ..............................छलकी चाय<br />
हम साथ मे<br /> लगन चिन्तन से <br /> .............................फिरसे चाय<br />
ठंडी रातो मे<br /> हम दोनों साथ मे<br /> .............................गरम चाय<br />
<br />
सजन </div>
</div>
</div>
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<span class="Apple-style-span" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 2px; -webkit-border-vertical-spacing: 2px; color: limegreen; font-family: 'comic sans ms'; font-size: 19px; line-height: 26px;"><br /><br />आरजू थी, मोहब्बत का पैगाम लिखेंगे ;<br />तन्हाई मे कैसे गुजरी रात वो दास्ताँ लिखेंगे !<br /><br />साजन </span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5415785072978487235.post-44399313695549725322013-03-06T10:51:00.004-08:002013-03-06T10:51:22.082-08:00पन्हा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="Apple-style-span" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 2px; -webkit-border-vertical-spacing: 2px; color: green; font-family: Verdana, Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 19px; line-height: 26px;"><br /><br />निद्राहीन आँखें,आँखों की पुतलियों मे नींद जागे !<br />भटकी हुई रुहु की माफीक प्यार की पन्हा मागें |<br /><br />सजन</span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04934458717531071409noreply@blogger.com0