पल . . . प्रिय ! तुम्हारे साथ के वह पल
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय ! तन्हाई के यह पल
या फिर मिलन के वह पल
पलक बिछाये बैठा हूँ हर पल ,
कैसे मिलेंगे फिर ये दोनों पल ?
प्रिय ! तुम याद करो वह पल
निश्चल पल में सचल नयनों के हलचल
में रोज याद करता हूँ यह पल
सचल पल में निश्चल नैनों की हलचल.
प्रिय ! यह बिरह का हर पल
या फिर मिलन का वह एक पल
पल में सिमट गया हैं अपना कल
कटे नहीं कट रहे हर एक पल !
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