Monday, May 10, 2010
चोट अब भी लगती हैं, पर दर्द और होता नहीं . . .
आंसू अब बहते नहीं,दिल अब रोता नहीं
गम के सागर मैं,मन अब बहता नहीं
हर गम एक सा ,नया है कुछ भी लगता नहीं
टूटे ड़ाल से पात,बसंत की हरियाली नहीं
गुलिस्तां में रोशन होते पोधे नहीं
उजढ़ा आसियाना, आसमान से डर नहीं
चोट अब भी लगती हैं, पर दर्द और होता नहीं . . .
Wednesday, May 5, 2010
पल . . .
प्रिय ! तुम्हारे साथ के वह पल
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय ! तन्हाई के यह पल
या फिर मिलन के वह पल
पलक बिछाये बैठा हूँ हर पल ,
कैसे मिलेंगे फिर ये दोनों पल ?
प्रिय ! तुम याद करो वह पल
निश्चल पल में सचल नयनों के हलचल
में रोज याद करता हूँ यह पल
सचल पल में निश्चल नैनों की हलचल.
प्रिय ! यह बिरह का हर पल
या फिर मिलन का वह एक पल
पल में सिमट गया हैं अपना कल
कटे नहीं कट रहे हर एक पल !
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