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Thursday, May 14, 2015

बेजान सूनी आँखें, सुख गये आँसू,नज़र धुँधलाते
दाँत कसकर भींचे, "वे" भूख को अंतढ़ीयों में दबाते
"वे" देते अभिशाप उस ख़ुदा को जिस कारन "वे" रोते
भूख से मरते,और आसमान तले जाड़ों में खुले सोते
उम्मीदें बाँध, दुआएँ कीं, पुकारा व्यर्थ ही सोते-जागते
"वो" करे उपहास,बढ़ाया दर्द-पिछले पाप का फल बताते
ग़रीब-दुखियों के दुख को सुनमें उबासियाँ "वो " लेते
हमारे"वो" "पांच-सितारा" में शान से बर्गर-पिज्जा खाते
भूख किया है ? हमारे "वो" अगर तरीके से जान-जाते
दुष्टता-बुराई ही है पनपी "उनमे", नैतिकता को मिटाते
दिन-रात चुन रहे सर्वनाश, अपने "वो" अभिशाप जुटाते
पाप-पुण्य की माने तो "वो" गन्दगी-खोर कीड़े से मुटाते
बजा रहे हैं द्वन्द का बिगुल अपने "वो" असमानता फैलाते
भूख किया है, हमारे "वो" अगर तरीके से जान-जाते ?


 सजन

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