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Thursday, May 14, 2015

लगे अन्दर कुछ खिसके धीरे से
दिमाग जब सुलगता गुस्से से
क्रोध का नतीजा अफ़सोस से
रोकिये इसे अपनी सूझ-बुझ से
जब होता कोई अवसाद मन में
परेशानिया रोजमरा जिन्दगी में
सूझे न आसन राह सुलझाने में
जवाब इसका मिले शांती-धैर्य में
अन्दर कुछ उछले जोर से
दिल जब महकता खुशी से
संतुस्टी का नतीजा गुमान से
रोकिये इसे सोच-समझ से
जब होता फैसला जल्दबाजी में
बिन अन्जाम भले और बुरे में
पछताये जब डोर नहीं हाथों में
जवाब इसका मिले पहले सोच में
अन्दर कुछ होता चेतना से
मन जब कहता आत्मग्लानी से
किये का नतीजा जाने-अनजाने से
रोकिये कदम फिर इसे दोहराने से


 सजन

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