मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं
कैसे, कियों, किसलिये,सोचकर में निरूत्तर हूं |
माता-पिता से प्रेम है या नहीं,याद कर लेता हूँ !
मेरे भाई-बहन,रिश्तेदार है जो-भी -
मैं सब से, जैसे-तैसे ,निभाने को हंस-बोल लेता हूँ |
निरन्तर न सही, समझाता हूँ उन्हें प्रेम करता हूँ !
पत्नी की बात अलग, न्यारी भी,
उनके आँखों से पानी बरसता है जभी ,
खुश करने को ,योगी जैसे मौन सुनता हूँ -!!
उन्हें बिश्वास दिला-देता, अगाद प्रेम करता हूँ |
जब प्रकृति के नियम परे, ललचाये मन भी ,
आप-बीती भूलकर भी ,प्रेम करने लगता हूं |
कोयल की तान, सुन्दर पक्षी मोर की ,
कल्पना शुरु होती है, हर रूप विचार की-,
कल्पना के है जो आधार, उन आधार से,
निशदिन बिलखता हूं, ,पर फिर भी प्रेम करता हूँ !!
मैं तो प्रेमी नहीं, पर मजबूरन प्रेम जरुर करता हूं |
पुत्र-कन्या की चर्चा भी नहीं उभरी जो अभी ,
मैं क्या लिखूं ,पास न होने का भी मलाल करता हूँ !
चुप भी नहीं रह पाता, बे-इन्तिहा प्रेम करता हूँ |
यार-दोस्तों की बात आइ नहीं, शेष है कुछ और भी,
आदतें, मजबूरी, ये सब तरह- तरह के शौख भी ,
चाहकर छुटते नहीं, मैं प्रेम से डोर पकड़ा हुवा हूँ ,
लिखें जब जल-जला या गजल या कविता करता हूँ !
मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं |
:-सजन कुमार मुरारका
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