इस दिल को जलाया हैं चाहत में,
तब होती है रोशन, तेरी महफ़िलें सनम !
जब चिराग़े- दिल जलता महफ़िल मैं,
जान बाकी है मेरे दिल में, तभी जानम,
धुवाँ निकलता,राख इकट्ठा हैं सीने में |
आग को भी दुश्मनी,धधकती रहे हरदम,
रौशनी भी दिल की न बुझे,इन्तजार में ?
कोई भी आंसू न बुझा पाये खुदा कसम |
छुप छुप के ज़माने से रोते जलन में
कियों करूँ यत्न?जहां टूटता हैं दिल का वहम,
हम दिल में तो रोते, हँसते हैं पर बाहार में |
आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम,
ठेस हलकी सी लगे तो देर नहीं चटकने में !
तूम ग़ैर की हो जाये तो शकुन पाये हम,
तन्हा होने का दर्द, वो जाने दिल हो जिन में,
जो अपनों को खोते,भरते नहीं उनके जख्म |
गर होती सच्ची मुहब्बत झलकती चेहरों में,
नहीं मोल बिकती कहीं पर शराफ़त, बेशरम !
बुजर्गों कि सच्ची अदावत- छुपे राज़ नज़ाकत में,
जलालत निगाहों से छ्लके,मासूम आँखे बेरहम |
ज़रा यह बता दे- किसकी बदौलत तुम है चर्चा में ?
मुझमें तू खुद को देख, तेरी परछाई हूँ मैं हरदम }
:-सजन कुमार मुरारका