नशे की हालत मे, दिल की बात :-
साकी मयखाने मे,छलकाती शबाब प्यालो मे,
पीलाये, हो-ता नशा, मजा है नशे मे, पीने मे ।
नशा पीने का , और साकी को है - पिलाने का,
चढ़ती दिलो-दिमाग पे , आलम होता नशे का ।
खुशबू साकी की या प्याले की, महकता मयखाना;
रहती है दिलो दिमाग पे, दोनों की अदा छलकाना !
चमन मे फूल खिले,खुशबु फैलाये,और मुरझा जाते,
बहार आती, दिल बहलाती, चली जाती होले-होले!
डूबे चाहे जितना साकी मे,नशे मे, बैठ मयखाने मे,
मजा कभी भी पुरा न होता,हद होती, होश गवाने से ।
नशे की खुमार, जीने के सामान, पिलाये जब साकी ;
पीके मजा,जीने की खुमार ,पीने की चाहत रहती बाकी।
जो नहीं पीते,उन्हें क्या पता,हम क्यों पीने को बेकरार;
लगता,कैसे जीते ?, जिसने साकी का किया नहीं दीदार!
कहते हमे "वह" तुम पीना छोड दो,जीना सीखो शान से,
कहते हम, पीओ तुम, जीना सीखो शान से, हर गम मे !
पीकर जीये,गम गलत किये ,नहीं,कंहा जी पाते ज़माने मे,
सब नशे मे जीते, उनका नशा रहता अलग-अलग भेष मे ।
किसी को धन का नशा,किसी को ताकत का या सत्ता का;
किसी को रूप का,किसी को मान-मर्यादा का या ज्ञान का !
कोई आधुनिकता मे, कोई रुड़ीवादी परम्पराओं मे जीता,
हर शख्स अपनी -अपनी सोच मे मशगुल हो के रहता ।
धर्म के नाम पर, इन्सान जब, इन्सानियत का लहु पीता,
रोटी,कपड़ा के नाम पर बह्शी,नगां नचाके मोज़ जो करता!
कितने कितने तरह के नशे हैं,किस किस की बात करूँ !
देख हाल दुनिया का, अच्छा है,मैं मेरे पीने के नशे से मरुँ !!
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नैतिक घोषणा :- यह कविता किसी को भी पीने के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है ,इसके बावज़ूद कोई अगर पीता है तो उसका पुर्ण उत्तरदायीत्व,पीनेवाले का खुद का होगा।लेखक,काब्यकोश या सम्बन्धित किसी की कोई जवाबदेही नहीं होगी। यह घोषणा हर गलत काम करने के बाद, उस से अपना पल्ला झाड़ने का एक संवेधानिक प्रक्रिया के तहत घोषित करने की आधुनिकतम उपाय मात्र है।
रही बात:-"नशे की हालत मे दिल की बात" की सो मैंने "लिखने" के नशे मे लिखी है। अत: किसी को भी मेरी बात से दु:ख पहुँचा हो तो,नशे के आलम मे कहा-सुनी मुवाफ़ करें और मन को साफ़ करें ।
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सजन कुमार मुरारका
साकी मयखाने मे,छलकाती शबाब प्यालो मे,
पीलाये, हो-ता नशा, मजा है नशे मे, पीने मे ।
नशा पीने का , और साकी को है - पिलाने का,
चढ़ती दिलो-दिमाग पे , आलम होता नशे का ।
खुशबू साकी की या प्याले की, महकता मयखाना;
रहती है दिलो दिमाग पे, दोनों की अदा छलकाना !
चमन मे फूल खिले,खुशबु फैलाये,और मुरझा जाते,
बहार आती, दिल बहलाती, चली जाती होले-होले!
डूबे चाहे जितना साकी मे,नशे मे, बैठ मयखाने मे,
मजा कभी भी पुरा न होता,हद होती, होश गवाने से ।
नशे की खुमार, जीने के सामान, पिलाये जब साकी ;
पीके मजा,जीने की खुमार ,पीने की चाहत रहती बाकी।
जो नहीं पीते,उन्हें क्या पता,हम क्यों पीने को बेकरार;
लगता,कैसे जीते ?, जिसने साकी का किया नहीं दीदार!
कहते हमे "वह" तुम पीना छोड दो,जीना सीखो शान से,
कहते हम, पीओ तुम, जीना सीखो शान से, हर गम मे !
पीकर जीये,गम गलत किये ,नहीं,कंहा जी पाते ज़माने मे,
सब नशे मे जीते, उनका नशा रहता अलग-अलग भेष मे ।
किसी को धन का नशा,किसी को ताकत का या सत्ता का;
किसी को रूप का,किसी को मान-मर्यादा का या ज्ञान का !
कोई आधुनिकता मे, कोई रुड़ीवादी परम्पराओं मे जीता,
हर शख्स अपनी -अपनी सोच मे मशगुल हो के रहता ।
धर्म के नाम पर, इन्सान जब, इन्सानियत का लहु पीता,
रोटी,कपड़ा के नाम पर बह्शी,नगां नचाके मोज़ जो करता!
कितने कितने तरह के नशे हैं,किस किस की बात करूँ !
देख हाल दुनिया का, अच्छा है,मैं मेरे पीने के नशे से मरुँ !!
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नैतिक घोषणा :- यह कविता किसी को भी पीने के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है ,इसके बावज़ूद कोई अगर पीता है तो उसका पुर्ण उत्तरदायीत्व,पीनेवाले का खुद का होगा।लेखक,काब्यकोश या सम्बन्धित किसी की कोई जवाबदेही नहीं होगी। यह घोषणा हर गलत काम करने के बाद, उस से अपना पल्ला झाड़ने का एक संवेधानिक प्रक्रिया के तहत घोषित करने की आधुनिकतम उपाय मात्र है।
रही बात:-"नशे की हालत मे दिल की बात" की सो मैंने "लिखने" के नशे मे लिखी है। अत: किसी को भी मेरी बात से दु:ख पहुँचा हो तो,नशे के आलम मे कहा-सुनी मुवाफ़ करें और मन को साफ़ करें ।
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सजन कुमार मुरारका
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