"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -एक )
हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में ‘सेदोका’ नव्यतम विधा है। यदि यह कहा जाए कि वर्तमान की सबसे नव्यतम विधा के रूप में स्थान लेता जा रहा है ।
सेदोका 38(अड़तीस )अक्षर में लिखी जाने वाली कविता है। इसमें "छ " पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ , तीसरी में ७ ,चौथी मे ५ ,पांचवी मे ७ और छठी मे ७ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है।"छ " पंक्तियाँ अलग-अलग होनी चाहिए। और किसी एक ही वाक्य को ५,७,७,५,७,७ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि छ पूर्ण पंक्तियाँ हों।
(आधार:- हिन्दी साहित्य काव्य संकलन से लिया गया है ) उदहारण स्वरुप मैंने कुछ प्रयास किया है , इस विधा को को आइये सब मिलकर आगे और बढ़ायें |
सेदोका की प्रत्येक पंक्ति एक साक्षात अनुभव है। कविता के अंतिम पंक्ति तक पहुँचते ही एक पूर्ण बिंब सजीव हो उठता है।लिखते समय यह देखें कि उसे सुनकर ऐसा लगे कि दृश्य उपस्थित हो गया है, प्रतीक पूरी तरह से खुल रहे हैं, बिंब स्पष्ट है।
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मन उदास
सिर्फ है एहसास
भूली बिसरी यादें
आशांये टूटी
बीत गई जवानी
जिंदगी की कहानी
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कल गुजरा
हर एक कल मे
खेल आने जाने का
समझो इसे
कल नहीं आयेगा
आज है ,कल होगा
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पड़ लिख वे
काबिल बनने को
घर कों छोढ़ चले,
रोटी के लिये
असहाय -जीवन
स्तब्द है अभिमान
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तुम्हारे साथ
बिताये हुवे पल
जला रहे हैं मुझे
तुम्हारे बिना
पलक बिछाये हूँ
काटे न कटे पल
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पंख चाहिये
देना कोई पैगाम
प्रियतम के नाम
उड़ जाऊंगा
मन में है बिश्वास
पंख अगर होते
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सजन कुमार मुरारका
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