"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -दो )
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बचपन से कालि सी रात
अकेला न्यारा न्यारा अमबस्या की बात
नहीं किसी का प्यारा मिलन की आश;
सह के आंसू पूनम रात ,
बीताया जैसे तैसे चांदनी का मिलन
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और रहा अकेला चाँद के साथ
अश्क आँखों से आंसू बहते
दिल मे नस्तर सा दिल तो रोता नहीं
चुभता दर्द कोई गम के सागर से
निकल जाता आदत हुई
लाख संभाले दिल उजढ़ा आसियाना
दिल मैं समा जाता दर्द सा होता नहीं
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अब निड़ाल निश्चल प्रेम
अपने से बेहाल, हवा की तरह है..
मकरी का सा जाल, दिखाई नहीं देता
टूटे जो रिश्तें है एहेसास,
बन गये निराले; कल्पना का आधार
दिल मे फूटे छाले सिर्फ होता विस्वास
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मैंने स्वीकारा चाहे हट के
जिंदगी सहती है लगना है हट के
यातना के बंधन जो सब हैं करते ,
रिश्तों से हार नहीं करते
सिर्फ घाटे का सौदा हर खुशियों भूल
भाग्य फल की बात नई राह मे भटके,
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पथझढ़ मे भरे नयन
पत्तो की हरियाली भीगे जो मेरा तन
चाहे अब रिश्तों मे अधरों मे कंपन
निभाया नहीं बिरही मन
चतुराई से बचे दिल की धढ़कन
प्यार नहीं उन मे जागे मेरे मे अगन
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रिश्तों की नग्मे प्रिया की याद
अविस्वास की आंखें जीने की चाहत मे
कुढ़न वाली बांते चुभ जाती काँटों सी
चाहत टूटी हिम शिला सी
दूरी हमारे बीच रहे परछाई सी
मिटा सगों का प्यार हर वक्त दिल मे
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सजन कुमार मुरारका
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