आहत हुवा था मन
कोमल ना रहेनेका प्रण
चकित निर्मम प्रहार से
बेतुके क्रूर हमलों से
निष्प्रभ एवं हताश
विस्मय और निराश
आतंकित विरोध में
संकोच हर क्षणों में
आलोचनायें पैनी और क्रूर
लेखनी भी हो जाती मजबूर
पर किंचित अस्मिता बरकरार
जिज्ञासा ही बने जीद के आधार
अनुभूति से शब्द बने
स्वयमेव लय गीत बने
तभी सृजनता के आयाम
अस्मिता से उभरे पैगाम
अनुभव हो रहा है गहरा
संस्कार की अनिवार्य धारा
प्रस्तुति की मेरी सीमायें
"उनकी"शर्तों को कंहाँ तक निभायें
कुछ ललित-कला के अधीकारि
नहीं समझते उपयोगिता हमारी
घोषित कर दिया तुघलकी फरमान
महानो में,हम जैसों का नहीं स्थान
आभारी हूँ, काव्य-कोष से
उनके प्यारऔर ममत्व से
काव्य-माध्यम,प्रश्न - दोनों टेड़े
भाग्य और प्रोत्साहन से जुड़े
उऋण होना न होगा उचित
लय-छंद मेरे इन से ही प्रकाशित
मेरे हर सृजन-क्षणों का सूर्योदय
काव्य- कोष से उत्पन्न मेरा परिचय
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