अकेला चंद्रमा,और सैंकड़ो तारे
खिलते है जब आकाश परे
छाते जगमगाते गुमसुम सारे
रोशन चंद्रमा, टिम-टिमाते बिचारे
पीड़ा पीकर भी रह जाते हैं तारे
बहस चली तारों के बीच
“चाँद के ही क्यों पीछे तुम,
तारे भी तो सुंदर हैं …..
उनपर क्यूँ नही लिखते तुम, ”
यही बात क्या भूले हम
इतनी सुंदर बात भला,
कलम उठाओ घर जाकर
कविता में इसको ढालो,
सुंदर सा अहसास है ये.....
खिलते है जब आकाश परे
छाते जगमगाते गुमसुम सारे
रोशन चंद्रमा, टिम-टिमाते बिचारे
पीड़ा पीकर भी रह जाते हैं तारे
बहस चली तारों के बीच
“चाँद के ही क्यों पीछे तुम,
तारे भी तो सुंदर हैं …..
उनपर क्यूँ नही लिखते तुम, ”
यही बात क्या भूले हम
इतनी सुंदर बात भला,
कलम उठाओ घर जाकर
कविता में इसको ढालो,
सुंदर सा अहसास है ये.....
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