किंचित अस्मिता या जिज्ञासा ही बने आधार
अनुभूति से शब्द बने,स्वयमेव लय गीत बने
तभी सृजनता के आयाम से उभरे पैगाम
अनुभव हो रहा है गहरा, संस्कार की अनिवार्य धारा
इस उलझन मे फंसा हुआ था क्या करना कुछ सूझे नहीं ….
हरदम दिल उदास सा रहता ढूँढे क्या था जानूँ नहीं ...
अनुभूति से शब्द बने,स्वयमेव लय गीत बने
तभी सृजनता के आयाम से उभरे पैगाम
अनुभव हो रहा है गहरा, संस्कार की अनिवार्य धारा
इस उलझन मे फंसा हुआ था क्या करना कुछ सूझे नहीं ….
हरदम दिल उदास सा रहता ढूँढे क्या था जानूँ नहीं ...
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