कुछ भूली बिसरी बातें
कुछ अपनों का दिया हुवा जख्म
याद आते बड़ जाती धड़कन
सम्भलते-सम्भलते सांसें बेदम
कि उमड़ पड़i कालि घटाओं का सावन
और बिजली सी चोंक जाती
तूफान सा हड़कंप,बिचलित है मन
सारी वह पीड़iयें फ़ैल जाती
डोलता मन एकदम,टटोलते- टटोलते
उंगलियाँ थककर घुप अँधेरे में
सुस्त होकर पोरों तक खोजती
तूफान के बाद का दर्दभरा मंजर
एक एक रोआ उसकी छुअन में
महसुश करता चुभ गया हो खंजर
तब समा जाते एक कोशिश में
रुकेगी जब आंधी, थमेगा जब तूफान
निकल पड़ेंगे नये सफ़र में
और तय करेंगे उन दूरियों को
जो उम्रके इस पड़iव तक पसरे
अपने बेमानी सी तलाश में
मान-अभिमान, सभी अंतर बिखरे
क्योंकर इस दुनिया में जो सहे
साबित हो चूका सिधान्तों में
वही रहे,चाहे बिजली की रोशनी से
वर्ना तो बस बादल से झर जायेंगे
यादों के घावों को बनाकर नाशुर
न होगा कुछ , दर्द में बस मिट जायेंगे
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