हैरत है कि यह ख़ुद भी जानता नहीं
जो बहार दिखता है, वह अन्दर नहीं
कहते है कि मैं होता हूँ,लेकिन नहीं होता
कहते है कि मैं नहीं हूँ,लेकिन ज़रूर होता
सवाल तो बहुत, पर उत्तर न पा सका
बन के तमाशा रह गया बेवस हकाबका
जो बहार दिखता है, वह अन्दर नहीं
कहते है कि मैं होता हूँ,लेकिन नहीं होता
कहते है कि मैं नहीं हूँ,लेकिन ज़रूर होता
सवाल तो बहुत, पर उत्तर न पा सका
बन के तमाशा रह गया बेवस हकाबका
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