Powered By Blogger

Friday, July 27, 2012

कविता कैसे हो जाती है,

कविता कैसे हो जाती है,
रफ़्तार जिनके सोच में, पिघलता कुछ अन्दर में
उतार रहा हो शब्दो में- बे-अक्कल,बे- फिजूल
छोटी-छोटी घटनाओं से बीते हुवे अतीत में
उलझ जाते बिन बात सपनो की दुनिया में
और आगे का इंतज़ार ?
जैसे सूरज पि‍घलकर बन गया हो लाल अंगार
दिल जैसे लू-लोहान शाम का डूबता रबि
मन हुवा सुनहरा-सा बहे पि‍घला-पि‍घला-सा
कुछ धुँधला धुँधला कुछ उजला-उजला
चमकते भाव छंदों में सोच के अंधेरो में
महकाकर सांसों को चुभती है केवल दिल में
वही डंक मारकर कविता हो जाती है।
रफ़्तार में शामि‍ल गर्म सांसों का धुआ
जो उठता चारों पर दि‍खता कहां, जो देख पाते
और समझ पाते, उन्हें ही आते ख़याल नये
इन ख़याल को समझे और कविता हो जाती है

No comments:

Post a Comment