मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण मे;
परमपिता ने वरदान समझ भेजा- ममता के आँचल मे;
नफरत मुझसे क्यों ? आई नहीं बात समझ मे ;
सृष्टि अब भावी-सृष्टि पर,लिप्त कैसे अत्यचार मे ?
प्रति-पालक पिता क्या कर मग्न हुवे संहार मे ,
तेरे तन का लहू पुकारता तुझे जीने की आस मे ;
हत्यारे सोचो ' ध्यानसे' तुम आये कैसे जग मे ?
मैं हूँ जग का आधार, मेरा निवास हर जननी मे |
फिर वह घातक रहते कैसे ,धरती माँ की गोद मे !
कैसा अनुराग है निष्ठुर" मात-पिता" का संतान मे,
कन्या या पुत्र का सृजन तो है उनके अधिकार मे ;
अपने किये का दंड,अजन्मी कन्या को अकारण मे,
तुम्हारा खून रहम मागें,असहाय लाचार अवस्था मे,
कब तलक पाप होग परम्परा,बंस-बेल की आढ़ मे,
तुम जरा इन्सान बनो, मत खो इन्सानियत, हैवानी मे !
सजन कुमार मुरारका
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