गजरा सजाया मैं ने मगर;
खुशबू फ़ैली देर तक,
हर दिल मे जंवा सा असर ,
चाहत जवां होती रही दुर तक ।
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श्रुंगार की बात न बताइये,
उम्र नहीं होती दिल लगाने की,
बस एक इशारा भर चाहिये,
नशे का आलम नहीं रहता बाकी।
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पड़ने लगी जो चांदी बालों मे,
तजुर्बे का पैमाना है उम्र का ;
अजमाने की मुराद है मन मे ,
बची हुवी ख्वाइशे है जताने का।
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थकेगा शरीर जब काया से,
तब सोचेंगे क्या खोया उम्र मे;
याद आएंगे हर पल बीते से,
जो गवाये बिन श्रृंगार रातों मे।
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दिन मे हम यों ही नहीं सोते,
के उम्र बीती हमारी,रातें जगते ;
हमे तो लगती थी तब छोटी राते ,
तभी अब इस उम्र मे दिन मे सोते !
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लोग सही कहते,इस उम्र मे भी;
बहकते हम गजरे की महेक से,
पूछेंगे उनसे जरा,पता तो चले भी,
उम्र का क्या तक़ाज़ा बहकने से ।
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प्यार के इशारे कभी नहीं बदलते,
" प्यार "का गजरा हमे मदहोश करता;
हम तो बस प्यार जताने लिख लेते,
और वो प्यार का इशारा समझ ही जाता।
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बस इतने मे कैसे खुश हो लूं,
बस चले तो बाते जरा लंबी कर लूं ,
आज " प्यार "की कविता को समझ लूं ,
गजरे की महेक से इस दिल को जवां करा लूं।
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सजन कुमार मुरारका
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