त्रिशूल ....(तृतीय चरण ),,,!!!
हुश्न के ज़लवे पर इतना न तुम इतराव
चमक दो दिन की,वक़्त रहते संभल जाव
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आईना हुश्ने-जिस्म की खुबशुरती बयां करता है
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxमेरे जज़्बात की कद्र कंहा,हर रोज़ यों ही दम तोड़ते
परवाह भला उन्हें क्यों, वह तो मोहब्बत का कारोबार करते ..........................................................
शायर ही ना होते ग़र इश्क मे बेवफाई का हुनर ना होता
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चोट अब भी लगती पर दर्द होता नहीं
चेतना तो मर गई पर जिस्म मारा नहीं
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हुक्मरानों की सियासत ने हमें बाँट रखा है
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxरास्ते का पत्थर,मन्दिर पहुंचा,प्रभु का दर्जा मिला
ठोकर मारने वाले ,आते जाते सज़दा करते,अन्ध-बिस्वास का भला
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धर्म के नित नये ठेकेदार ;लूट रहें दुनिया सारी
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किसी के दर्द को बांटना हो तो,दिल मे उतर कर देखो
भर के बांहों मे,उसकी आँखों मे खुद की औकात देखो..........................................................................
दर्द की ग़ज़ल उम्दा होती,दिल की लगन जब लगती
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कुछ सोच मे बदलाव चाहिये इन्कलाब के लिये
बर्फ बने दिलों मे ज्वालामुखी सा रिसाव चाहिये
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मौनम सन्मति लक्षणम,अत: जो सहे वह मरे
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXअब रिश्तों का मुल्यायन होता स्वार्थ के बाज़ार मे
बिचित्र गणित,सास-श्वशुर बदल जाते मात-पिता मे
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तरक्की के दौर मे प्यार भी व्यापार नज़र आता है
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सजन कुमार मुरारका
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