"त्रिशूल"......(द्वितीय चरण)..!!!
क़ुदरत का बड़ा अज़ुबा,हर इन्सान को जन्मती औरत
इन्सान का बड़ा अज़ुबा,इन्सानों के हाथ मरती औरत
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कुदरत भी अचरज़ मे- इन्सान बनाया,बन गया शैतान
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खंज़र से लगा ज़ख्म फिर भी भर जाता
ज़ुबां से लगा ज़ख़्म कभी भर नहीं पाता
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बोलो जब भी, बोलो मीठा बोल
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मुल्क की हिफाज़त थी जिन के नाम
उन्हों ने ही किया इसका काम तमाम
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चोर के हाथों मे दिया चाबी थमाय
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ख़ुशी के लम्हों मे आंसू निकल आते
ग़म की बात ही क्या, आसूं तो बहते
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आसुंओं पर न जाओ,इनकी अलग सी दास्तां
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बड़ी मुद्द्त से चाह थी कोई दिलरुबा मिले
मिले भी तो सनम,बड़े ही वह बेवफा मिले
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प्यार को असर अब दिल मे नासूर सा बसता
************************************पेट की भूख सब से बड़ी बीमारी और लाचारी
धर्म,इमान कुच्छ भी नहीं बचे,पड़े सब से भारी
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भूखे पेट भजन ना होये नन्दलाला
************************************आजका मज़नू,भटकता हुआ भंवरा, कुच्छ आवारा,
कली-कली की चाहत,पर काँटों से उलझता बेचारा
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परवाने जल जाते यों ही शमा के खातीर
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महबूब को पाकर, ख़ुशी मे ज़िन्दा थे बेमिसाल
उनको खोकर भी ज़िन्दा हैं लाश सारीका हाल
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उनको पाने को जीते थे,अब भी पाने को जीते हैं
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सजन कुमार मुरारका
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