Powered By Blogger

Wednesday, November 14, 2012

धढ़के- यादे बन उन के दिल मे !!!

 
 
पथ्थर की चट्टानों को चीर कर निकलता है दरिया,
सनम पथ्थर दिल से "आह" की भी है खामोशिया,

समंदर से मिलने को बेताब दरिया दौढ़ लगाती ;
मेरी जान की दुश्मन, पास से उठकर चली जाती,

समंदर मे भी चाँद के आकर्षण से ज्वार- भाटा आता,
ऐसी क्या रुश्बाईयां, वह पर्दा नहीं ह्ठाती  खिढ़की का |

पर्दा-नशीं थे नहीं वह, हुश्न की चर्चा सरे बाजार होती है ;
सरेआम महफील मे उनका जलवा कत्ले-आम मचाता है !

कत्तल भी हो जायें,  रजो-गम नहीं,   दीदार तो होता है ,
अफ़सोस किसी भी दौर का नहीं,यादें दीदार की महफूज है ;

मेरे दिलवर की शोख़ी,खिलती कलियों की नक्श- पहचान है,
रहम-ऐ-अदब का तकाजा, उनकी सादगी कलियों को बख्शा है ;

सादगी की यह मूरत, फूलों सी मासूमियत का नाकव पहेने है ;
लरज़ता दिल,रंगीनियाँ छुपी है सीने के अन्दर, मेरा दिलवर है !

मासूमियत की सादगी से, वह जहेन में फरेब का नश्तर चलाती ,
मुहब्बत की सर्द चट्टानों को पिघला कर आग का समंदर बनाती ;

हक़ीक़त में बियोग कि आग, बर्फ बनके, चोट पर लगा रही मरहम !
जिस्म के अन्दर पिघल रही बर्फ, अश्क बन, बहती रहती है हरदम |

नफरत न होना बुज़दिली की बात नहीं, न है कोई शिकवा वेबफाई से,
मालूम मुझे खोखली दीवाल पर टीका यह बेरुखी का किल्ला वहम से ,

कितने अर्स काबीज रखेगी वह जिद्द खुद के बेकाबू दिल की धढ़कन पे ,
हमारी भी जिद्द है, मरते दम तक, यों ही धढ़के- यादे बन उन के दिल मे |

सजन कुमार मुरारका

No comments:

Post a Comment