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Sunday, February 17, 2013

इश्क छुपता नहीं

इश्क छुपता नहीं !

प्रिये! तुम्हारे निभाने की यह रीत है क्या ?
प्यार किया, गुनाह नहीं, फिर डर है क्या ?

वेरुखी की  फ़ितरत मन मे है अगर  जुदा ;
जानम! कहते, इश्क कभी कंहा  है छुपता !

आपने  जनाव ! यह बात छिपा रखी थी,
लाख छिपाये, चहेरे पर बात आ रही थी;

चाहे जो यत्न करे, सच्चाई तो छुपती नहीं ;
छुपाओ चाहे गुलाब को,खुश्बू छुपती नहीं  ।

इन्कार करने की इतनी सी वज़ह है अगर,
जताना न था तो  कोइ शिकवा नहीं मगर,

यह खबर तो सरेआम सबको खबर हो गई,
आप इतने भी नादान नहीं, बेखबर रह गई;

यह नजदीकीयां, नजदीक है दिल के  इतनी,
दूरियाँ चाहे बनाना, दूरियाँ होती कंहा अपनी|

सजन कुमार मुरारका 

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