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Friday, March 16, 2012

रिश्ते !

रिश्ते !
सुलगते रहते हैं सारी उम्र
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है  जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !

यह चिंगारी है मनके अंगारों की तरह
फिर भी भस्म नही होते जलकर
ख़त्म नही होते,
सहते हैं जिंदगी भर
किसी पुराने घाव की तरह!

दिन मैं भी तारे दिखते है
कैसे पहचान लेंगे चहेरे से
गिरगिट की तरह रंग बदलते
हमेशा साथ है साये की तरह !

गीली लकड़ी जैसे
कड़वा कसैला धुँआ उगलते
कभी भी जलकर ख़त्म नही होते।
सताते हैं जिंदगी भर किसी प्रेत की तरह!

सहज है जिंदगी,
फिर भी मज़ा नहीं अगर
शिद्दत की मुहब्बत थी मगर
गुजर रहे हैं क़रीब से अनजान राही की तरह !

दिन गुज़रता,अस्तित्व फैलाता
मन जागकर पल दर पल खोजता
माँ के आंचल की तरह,
सधवा के  सिंदूर की तरह,
अंधे की लाठी की तरह,
 कलाई मैं बहना की राखीके तरह,
फूलो मैं खुसबू की तरह,
सीप मैं समाये मोती की तरह.
 रूह से हो जिसका नाता
खोये हुवे रिश्तों मैं,
अपनापन जिस मैं समाता
ढलती शाम में आनेवाले सुबह की तरह !

:- सजन कुमार मुरारका

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