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Friday, March 16, 2012

नाकाम मोह्हबत

नाकाम मोह्हबत

छोटी सी बात कर देगी जुदा हम को
हालात इतने बदल जायंगे, मालूम न था हम को,
क्या यह रिश्ता इतना कमज़ोर था हमारा ?
जिसे चाह, पल भर में छोढ़ दिया बेसहारा
जो एक लम्हे के लिये भी होते ना थे दूर
आज उन्हीकी जुदाई के गम सहे, बेकसूर
कभी उनके ही रास्ते पर बिछाये थे हम ने फूल
आज उन्ही रास्तों पे खुद ही फांक रहे हैं धुल
अब तो दर्द-ऐ-गम रहता है इस दिल में
कोई तो आये, मरहम लगाये इस ज़ख्म में
अब कोई दीवाना कहता,कोई समझता पागल
मगर धरती की बेचैनी को बस समझे बादल
मैं उनसे दूर भले,  वह मुझसे दूर कंहा
यह मेरा दिल जाने, जाने कैसे सारा जंहा
मुहब्बत एक एहसासों की अनबुझी सी कहानी
हीर-राँझा,सोनी-महिवाल, कभी "मीरा"दीवानी
यहाँ सब लोग कहते मेरी आँखों मैं आसूं हैं
जो समझे तो मोती,ना समझे तो पानी है
समंदर पीर का अन्दर, लेकिन रो नहीं सकता
यह आसूं प्यार का मोती, जो रुके नहीं रुकता
मेरी चाहत को समझा नहीं  ओ-दिले बेरहम
हो नहीं पाया, फिरभी तेरे पे मरता हूँ हरदम

:-सजन कुमार मुरारका

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