अश्क
यह अश्क आँखों से जब निकलता है
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल बताता है
वक़्त ही है जो और रुलाता
करवटे बदल बदल कर नहीं बिखर जाता
जिंदगी की कडवाहट, सफ़र की गर्द
वक़्त के साये मैं हो जाते है सर्द
यादों के साये मैं गुजरता नहीं वक़्त
मिटा दे यह गम, ज़माने मैं नहीं ताकत
खुद-ब-खुद यह अश्क सैलाब बन जाता
लाख संभाले दिल ,आँखों से निकल आता
अश्क आँखों से निकलता, दिल मैं समांजाता
:- सजन कुमार मुरारका
No comments:
Post a Comment