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Friday, March 16, 2012

जलन

जलन

काफी नाम सुना था उनका,
 ऊँचा ओहदा, मान, सन्मान
नाम जिनका अपने आप में रखे पहचान
उन के जरिये पहचान बनाने
उनके पास आश लेकर पहुंचे !
तब मेरी सचाई सामने आई
भ्रम फिर भी नहीं टुटा,
मेरी नजर में वह हो गये गुनाहगार
सिर्फ और सिर्फ एक आम इन्सान
और कर देता हूँ शामिल भीड़ मे
बिना सोचे, समझे, कुढ़न से
गहरा सदमा, मानसिक कस्ट
कितनी पीड़ादायी होती सचाई
उम्मीदों का टूटना
नहीं कर सकते बर्दास्त इस को,
 लगता है वो एक साज़िश है
किसी अच्छे खासे प्रयास को
सिरे से नकार देने की,
बेबस होकर जलन से लगता है
यह उनका अपना अहम्
दिखाने की, जताने कि-क्या हो तुम ?
ईर्षा भाव से बिबेक खोकर,
लगता है वह कुछ भी तो नहीं ...।
न तो वह है महादेबी वर्मा
नहीं "गुलजार", न दीनकर
और न "हरिबंसराय बच्चन"
फिर किस लिये इतनी हिम्मत...?
उनका जरुर है अपना मुकाम
नाम याद रखने को बेताब लोग
उन जैसो से भरी पड़ी दुनिया,
किस किस की सुने
किसे याद रखे, किसे भूले
हर दिन उग आते मकरी के जालों से,
दुर्भाग्य से एक अदना सा पागल
सीमाओं को तोढ़कर,
भानुमती का कुनबा जोढ़कर
हस्तियों में, नामचीन लोंगों में
अपनी पहचान बनाने, नाम फ़ैलाने
कामयाब हो गया जो कुछ भी नहीं है,
न जानता हो छंद, भाव और लेखन
और जिसका प्रयास भी बेतुका
नाम फ़ैलाने की सुविधा के लिये
इधर उधर की तुकबंधी जोढ़कर
अब तक खुद को कवी समझता !
 मैं ज्वालामुखी सा फुट रहा,
"ना"सुनकर मन ही मन मर गया
और एक हारे हुवे जुवारी की तरह
वही चिराचरित सड़ांध मारता,
दर्द, आंसू और खीज से बना
एक आम इन्सान
फिर अंधरे में गुम होने के डर से
उन्हें देता हूँ तकमा फलाना आदमी...
मेरे बढ़ते कदम को रोकता है,
उसे शायद कविता की समझ नहीं !
खुद को स्वान्तना देकर "फ़लाने" से
भीढ़ जाने को हो रहा हूँ तैयार.....
मन को बिश्वास दिलाता हूँ
 नाम मेरा अपने आप में लोग जानेगे
रखेंगे पहचान-"यह कोई फलाना नहीं है"

:-सजन कुमार मुरारका

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