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Friday, March 16, 2012

प्रेम

प्रेम
निश्चल प्रेम कैसा होता है
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की तरह होता है
... दिखाई देती है नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी बातें
दुनिया-भर के समझोते
शायद ज्वाला की तरह होता है
पता नहीं कौन-सा बिश्वास
या फिर ऐसा कोई एहेसास
पूरी हो रही हो जैसे कोई आश
शायद छाया की तरह होता है
फूलोंवाले बग़ीचे में तितली सा
रंग-बिरंगी दुनिया मैं इन्द्रधनुस सा
बच्चों के लिये माँ का आंचल सा
शायद कल्पना का आधार होता है
चाहत को प्रेम बताना
साथ रहने को प्रेम माना
देह वासना को प्यार जाना
शायद जरुरत की परछाई होता है

:- सजन कुमार मुरारका 

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