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Monday, February 18, 2013

जीने का सहारा



तब रात की तन्हाई में याद करता था
अब रात की तन्हाई में याद करते हैं
तब तेरी यादें  मेरे जीने का सहारा था
अब तेरी यादें  मेरे जीने का सहारा हैं

सजन

बेरुखी



खुद की बेरुखी पर
     वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
   हम गम का सागर पी जाते

सजन

तोउफा दर्द का!



दर्द को ना देखिये , उल्फत की नज़र से,
स्वीकारा इसको हमने तोउफा समझ आपसे;

सजन

चाहत



मरना चाहे इस लिये,
उनके दिल से गिर गये ;
जिन्दा हूँ की हमें फिर से,
दिल मे ज़गह मिल जाये !

सजन

कातिल



कातिलाना मुस्कान अधरों मे,हंसी,उनके चहरे पर ,
देख हाल हमारा," खुशी"छुपती नहीं,जल्लादी शान ;

सजन

शिकवा



यकीनन जीने को जी लेते,महफूज अगर रहें उनके इरादे,
नफरत मे भी डर है,शिकवा करेंगे,  हम तब्बजो नहीं देते !!

सजन

गम के आंसू



गम के आंसू पी-पीकर, गम ही हम से पनाह मांगें जालिम !
हमारी दास्ताँ सुन, मयखाने मे प्यालों पर प्याले भरें जाते हैं...!

सजन

ख्वाब



सोचते हैं, ख्वाब में भी दूर रहेंगे तुम से !
पर नींद नहीं आती बिन तुम्हारे  ख्वाब के ,

सजन

नज्म



प्यार की नज्म मगर जाने-
क्यूँ लाख कोशिश से भी न लिख पाते हैं ?
लगता है फुल पे मंडराती तितली
पकड़ते-पकड़ते उंगली से छुट जाती है!!

सजन

दर्द



बंद कर लेते अपने होंट,
मगर दिल से दर्द है निकला ;

सजन

परछाई



फुर्सत नहीं,जरुरत नहीं, न इमान भी,
किसी और को पाने की ;
तुम रहते हो हरवक्त साथ,
देख लेते हैं तुम्हे अपनी परछाई मे,

सजन

तन्हाई की रात



अकेला सा महसूस करता तन्हाई रातों मे,
याद तुम्हे कर लेता हूँ;
हर लम्हा खुद-ब-खुद आबाद होता,
हुजूम निकलता लाखों चाँद-सितारों का|

सजन

Sunday, February 17, 2013

भेंट



भेंट क्या करें तुम  को फूलों का गुलिस्ता या  खिलते गुलाब की कली
तोहींन हमारी,खुद गुलिस्ता या खुद गुलाब है जो,वही उन्हें देने की...

सजन

हाल परवाने सा


हाल परवाने सा, शंमा रोशन हुई,
खींचे चले आते,पता अन्जाम मिलन का :
हम तो जीते जी मर गये हैं मजबूर-नाकारा
सांसे चलती आपके साहरे,  !!

सजन

दीवाना



पंखुढ़ियों मे फँस, अदाओं से बेहाल,हो कर परेशान;
दीवाना बन,काँटों के जखम लिये, अश्क भीगे नयन;

सजन

कातिल



कातिलाना मुस्कान अधरों मे,हंसी,उनके चहरे पर ,
देख हाल हमारा," खुशी"छुपती नहीं,जल्लादी शान ;

सजन

" चाँद "



"उनके " हुश्न से उस चाँद को मिलाना ही गैरवाजिब था,
 मेरे " चाँद " से बाहर आसमां का खुद ही शरमा गया !

सजन

शिकवा



यकीनन जीने को जी लेते,महफूज अगर रहें उनके इरादे,
नफरत मे भी डर है,शिकवा करेंगे,  हम तब्बजो नहीं देते !!

सजन

गम के आंसू



गम के आंसू पी-पीकर, गम ही हम से पनाह मांगें जालिम !
हमारी दास्ताँ सुन, मयखाने मे प्यालों पर प्याले भरें जाते हैं...!

सजन

ख्वाब



सोचते हैं, ख्वाब में भी दूर रहेंगे तुम से !
पर नींद नहीं आती बिन तुम्हारे  ख्वाब के ,

सजन

आईना


आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम,
ठेस हलकी सी लगे तो देर नहीं चटकने में !

सजन

नज्म



प्यार की नज्म मगर जाने-
क्यूँ लाख कोशिश से भी न लिख पाते हैं ?
लगता है फुल पे मंडराती तितली
पकड़ते-पकड़ते उंगली से छुट जाती है!!

सजन

वक़त



कहते जो हमारे लिये उनके पास वक़्त नहीं है ;
खोजेंगे हमे,वक़त आने पर,यह हमारा वादा है !

सजन

सादगी




मासूमियत की सादगी से, वह जहेन में फरेब का नश्तर चलाती ,
मुहब्बत की सर्द चट्टानों को पिघला कर आग का समंदर बनाती ;

सजन

शोख़ी



मेरे दिलवर की शोख़ी,खिलती कलियों की नक्श- पहचान है,
रहम-ऐ-अदब का तकाजा, उनकी सादगी कलियों को बख्शा है ;

सजन

दीदार



कत्तल भी हो जायें,  रजो-गम नहीं,   दीदार तो होता है ,
अफ़सोस किसी भी दौर का नहीं,यादें दीदार की महफूज है ;

सजन

यादे



कितने अर्स काबीज रखेगी वह जिद्द,
खुद के बेकाबू दिल की धढ़कन पे ,
हमारी भी जिद्द है, मरते दम तक,
यों ही धढ़के- यादे बन उन के दिल मे |

सजन

मासूमियत



मासूमियत की सादगी से, वह जहेन में,
 फरेब का नश्तर चलाती ,
मुहब्बत की सर्द चट्टानों को पिघला कर.
 आग का समंदर बनाती ;

सजन

हुश्न

पर्दा-नशीं थे नहीं वह,
हुश्न की चर्चा सरे बाजार होती है ;
सरेआम महफील मे,
उनका जलवा कत्ले-आम मचाता है !

सजन

दर्द



बंद कर लेते अपने होंट,
मगर दिल से दर्द है निकला ;
खुदा का शुक्र है !
अभी तल्लक मेरा जनाजा न निकला |

सजन

परछाई



फुर्सत नहीं,जरुरत नहीं, न इमान भी,
किसी और को पाने की ;
तुम रहते हो हरवक्त साथ,
देख लेते हैं तुम्हे अपनी परछाई मे,

सजन

तन्हाई की रात



अकेला सा महसूस करता तन्हाई रातों मे,
याद तुम्हे कर लेता हूँ;
हर लम्हा खुद-ब-खुद आबाद होता,
हुजूम निकलता लाखों चाँद-सितारों का|

सजन

दिल ने लिखा



समुन्दर की रेत पर लिखा,
लहरें आई और धो गई;
रेत का दोष इसमे कैसे,
दिल ने ग़लत जगह लिख था।


सजन

टुटा दिल


कभी  किसी का दिल
दियो ना अकारण दुखाय ,
मन टूटे  एक बार,
लाख यत्न करे जुड़  न पाय,


सजन

मोहब्बत


मोहब्बतकी आयतों को सनम,
ख़ुदा-ऐ पाक का दर्ज़ा दिया |
फिर भी नजरें न हुई इनायत,
हमने ग़म से दामन जोड़ लिया,

सजन

जज़्बात


मेरे जज़्बात की कद्र कंहा,
हर रोज़ यों ही दम तोड़ते;
परवाह भला उन्हें क्यों,
वह तो मोहब्बत का कारोबार करते।

सजन

आसूं



आसूं  की बात क्या,  ग़म मे ही तो  बहते,
ख़ुशी के लम्हों मे भी आंसू निकल आते।

सजन

चाहत



बड़ी मुद्द्त से चाह थी कोई दिलरुबा मिले;
मिले भी तो सनम,बड़े ही वह  बेवफा  मिले !

सजन

ज़ख़्म

खंज़र से लगा ज़ख्म फिर भी भर जाता;
ज़ुबां से लगा ज़ख़्म कभी भर नहीं पाता|

सजन

इंतज़ार



दिन गुज़ारते उम्मीद से ,रातें गुज़रेगी ख्यालों मे,
रातें नहीं गुजरती ख्यालों से,इंतज़ार के लम्हों मे|

सजन

गजरा



गजरा सजाया आपने मगर;
खुशबू फ़ैली देर तक,
                      हर दिल मे जंवा सा असर ,
                      चाहत जवां होती रही दुर तक ।

सजन

आरजू


किसी के दिल में पनाह पाये,यह हमारी आरजू है ;
किसी के होंटों की मुस्कुराहट बने यह अरमान है ;

सजन

नजदीकीयां !



नजदीकीयां दिल कि,
दिल का हिस्सा बनी|
दिल से चाहे हटाना,
दिल को होगा मिटाना|

:सजन

नज़र


 
नज़र मिले,नज़रें बचाकर,
नज़रें चुराकर करे इशारा,
नज़रें उठाये,नज़रें गिराये,
नज़रोंसे प्यार क खेल सारा;


सजन

साथ बीते पल



वह लम्हा खोना नहीं चाहते
जब तुम्हारा साथ था ;
यह लम्हा जीना नहीं चाहते
जब तुम्हारा साथ छुटा !


सजन

दिल की कहानी



प्यारके हर पल मे,
उनकी कहानी लिखी थी;
दिल के कागज़ पर,
पुरी ज़िन्दगानी लिखी थी,


सजन

मिलन


मिलके,ज़ुदा हो गये खुदसे,
हुस्नसे नहीं,तुमसे था प्यार;
दिल ने कहा वेवफा दिल से
अभी तो बाकी है दीदार !

सजन

इश्क छुपता नहीं

इश्क छुपता नहीं !

प्रिये! तुम्हारे निभाने की यह रीत है क्या ?
प्यार किया, गुनाह नहीं, फिर डर है क्या ?

वेरुखी की  फ़ितरत मन मे है अगर  जुदा ;
जानम! कहते, इश्क कभी कंहा  है छुपता !

आपने  जनाव ! यह बात छिपा रखी थी,
लाख छिपाये, चहेरे पर बात आ रही थी;

चाहे जो यत्न करे, सच्चाई तो छुपती नहीं ;
छुपाओ चाहे गुलाब को,खुश्बू छुपती नहीं  ।

इन्कार करने की इतनी सी वज़ह है अगर,
जताना न था तो  कोइ शिकवा नहीं मगर,

यह खबर तो सरेआम सबको खबर हो गई,
आप इतने भी नादान नहीं, बेखबर रह गई;

यह नजदीकीयां, नजदीक है दिल के  इतनी,
दूरियाँ चाहे बनाना, दूरियाँ होती कंहा अपनी|

सजन कुमार मुरारका 

औरत

औरत 

खुदा का नक्शा औरत, लाजवाव,बेमिशाल,बेहिसाब  ;
अदायें,नखरे,नज़ाकत,ज़लवा,किसी को रूप का शबाव .

जग़ मे भेजा तितलियों को रस,रंग,माधुर्य से भरा नकाव,
कत्लेआम मचाये बिन हथियार,दिखाये झूटे-सच्चे ख्वाब,

दिमाग पर नशा सा ,मन भ्रमित सा,दिल का नहीं जवाब,
उम्र का तक़ाज़ा,बिन उम्र के लिहाज़,आदतन जैसी शराब;

कुछको शौख़, कुछ की बेबसी पीना, कुछ पीके बदहवाश,
उनके  ज़िस्मानी  नुमाइश से इमान खोता  होश-हवाश;

नागीन सी बल खाये,नीली आँखों में डुबाये,दिल नादान,
जिसमें जितनी प्यास भड़की,पाने को उतना ही परेशान;

नज़रों से बचे, नज़रें मिलाकर,नज़रें चुराकर करे इशारा,
नज़रों से गिरे,नज़रें उठाये,नज़र से नज़र का खेल सारा;

खुदा तुम्हे नहीं लगता की सृष्टी को चलाने बनाई औरत,
मेरे मोल्ला ! औरत अक्सर कैसे बन जाती है  कयामत,

औरत को क्या कहे जीने का मकसद,या मौत का सामान;
माता,बहन,पत्नी,रिश्तों की बात छोडें,दिखे भोग समाधान;

ईश्वर ने सृष्टी का भार हटाने रची थी शायद औरत की रचना,
कामिनी,कोमल,सहज़,सरल,निर्मल ह्रदय,रस, कृपा-करुना ;

सजन कुमार मुरारका 

मन की भूख !

मन की भूख  !

कवि,तुम जो लिखते हो ,
सोच के सागर मे;
कई कई बार,
पहले डुबकी लगाकर!
भावनाओं के मोती,
या गहराई से,
जलज़-सिक्त;
धुली हुई मिट्टी,
उठाकर या बटोरकर;
रूप देते !
मासूम चुलबुला शैशव;
पल्लवित किशोर अवस्था,
उतेज़ित यौवन ,
झुरियों भरी अधेड़ उम्र,
और थका-हारा वार्धक्य;
हर तरह का वर्णन!

प्रेम-वियोग,सुख-दु:ख,
बन्ध आँखों से,
उखड्ती साँस,असहाय दर्द;
लहु को करे सर्द या ज़ोशीला;
दिल दहलानेवाली बात;
लिखते तुम,लिख सकते !
परन्तु! लिखते ही क्यों ?
मैं सोचता-"भूख"के कारण"!
रोटी,कपड़ा,मकान,
यश,प्रतिष्ठा,मान-सन्मान,
व्यवस्था,अव्यवस्था के दंशन;
नीति-अनीति के कथन,
कहे-अनकहे वचन,
जो शब्द नहीं:-
सिर्फ़"भूख"के प्रतिफलन |
हम सब भूखें,भूख मिटाने,
कविता लिखते हैं,
पर यह पेट नहीं भरता !
सिर्फ भरे दिमाग और मन |

सजन कुमार मुरारका