(१)आमार मनेर मानुष, प्राण सइ गो (भाटियाली) / बांग्ला
(२)आमार सरल प्राणे एत दुःख दिले (भाटियाली)/ बांग्ला
यह दोनों बंगला लोक-गीत का हिन्दी रूपांतरण का प्रयास है
(१)
मेरे मन का इन्सान, है प्राण-प्रिया
खोजे कंहा मिले
मैं जाऊंगा उस देश
जिस देश में इन्सान मिले।।
यदि मन का इन्सान मिलता ह्रदय के अन्दर
बसाता अति यतन कर।.।
मैं मन-सुत से माला पिरोकर
पहनता उसके गले।।
सोचा था मन- मन में, वह न जायेगा मुझे छोड़कर
हाय मेरे दुर्भाग्य चले
इसलिये धोखा देकर- चले,
यह ही था क्या मेरे भाग्य के हवाले ।।
(२)
मेरे सरल मन को इतना दुःख दिया।।
सहे ना यौवन ज्वाला,
प्रेम न करता, था भला, है प्रिया।
दोनों नयन में नदी नाला तुमने सखी बहाया।।
आगे से मैं ना जान पाया
इतनी पाषाण होगी तुम प्रिये।
बैठा रहता मैं एकेला, क्या होता प्रेम ना करने मे।।
तुम प्रिये रहो सुख में,
देखेंगे लोग,मर जाऊंगा मैं,
अभागे के मरणकाल में आना खबर पाने से।।
:-सजन कुमार मुरारका
यह दोनों बंगला लोक-गीत का हिन्दी रूपांतरण का प्रयास है
(१)
मेरे मन का इन्सान, है प्राण-प्रिया
खोजे कंहा मिले
मैं जाऊंगा उस देश
जिस देश में इन्सान मिले।।
यदि मन का इन्सान मिलता ह्रदय के अन्दर
बसाता अति यतन कर।.।
मैं मन-सुत से माला पिरोकर
पहनता उसके गले।।
सोचा था मन- मन में, वह न जायेगा मुझे छोड़कर
हाय मेरे दुर्भाग्य चले
इसलिये धोखा देकर- चले,
यह ही था क्या मेरे भाग्य के हवाले ।।
(२)
मेरे सरल मन को इतना दुःख दिया।।
सहे ना यौवन ज्वाला,
प्रेम न करता, था भला, है प्रिया।
दोनों नयन में नदी नाला तुमने सखी बहाया।।
आगे से मैं ना जान पाया
इतनी पाषाण होगी तुम प्रिये।
बैठा रहता मैं एकेला, क्या होता प्रेम ना करने मे।।
तुम प्रिये रहो सुख में,
देखेंगे लोग,मर जाऊंगा मैं,
अभागे के मरणकाल में आना खबर पाने से।।
:-सजन कुमार मुरारका
No comments:
Post a Comment