नव अरुणोदय
भोर तले नभ में शोभीत अरुणोदय
दूर कंही मंदिर में स्वर गूंजे मंगलमय
अम्बर में रक्तिम उजाला प्रकाशमय
मुखर पंछी उड़े,जागी धरनी गतिमय
हर्षित धरा,रूप-माधुर्य से गर्बित-निहाल
खिलते पल्लव,हरित पीत, तरुवर विशाल
निर्झर झरने,वसुधरा का वैभव बेमिसाल
कल कल वहती नदीयाँ,यौवन मय-चाल
शाम तले,दीप जले,क्लान्त रबि अस्तमय
घोर यामिनी,शीतल शशी का रजत उदय
कुंजन-गुंजन,धीर-अधीर,स्तब्द-सुप्त जनाश्रय
उद्वेलित वसुधा,अभिलाषित चयन नव जोय्तिर्गमय
सजन कुमार मुरारका
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