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Saturday, September 8, 2012

मन की गति-प्रकृति


मन की गति-प्रकृति
जल-प्रपात की जल-धारा
बहे इधर-उधर
कभी तेज, कभी मंथर
मन की गति-प्रकृति
जल भरे बादल
गरजे या बरसे
मुसलाधार या रिम-झिम
कढ़के जोर से
मन की गति-प्रकृति
स्थिर पर्बत स्तर
कठोर और,बेजान,
उपजे जिस में
पथ्थर,त्रिन या तरुवर
मन की गति-प्रकृति
निर्मल, कोमल- पवन
झंझावत या मन्द
उन्मुक्त, स्वाधीन
देती विनाश और जीवन
मन की गति-प्रकृति
सर्वभूक ज्वाला
दहन, तपन और जलन
जलाये,करे भस्म
निर्लिप्त,निर्मम जले अगन
मन की गति-प्रकृति
फ़ैली हुई भूमि या मैदान
बंजर या उपजाऊ
कांटे, फुल,खेत-खलियान
वन-उपवन या रेगिस्थान
जल,बादल और पर्वत
हवा, अग्नि और भूमि
और न जाने दिखें सर्वत्र
भिन्न रूप,और आधार-आकृति
आचार-आचरण एक सी प्रवर्ति
समभाव से समझे मति- गति
मन की दिखेगी गति-प्रकृति

:-सजन कुमार मुरारका

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