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Saturday, September 8, 2012

सबक जिन्दगी का


 सबक जिन्दगी का

सब जन्मे इक बीज से

सबकी मिट्टी एक

मन मे दुविधा पड़ गयी

हो गये रूप अनेक

जो तू सच्चा मन से

सब से बोल एक

उंच नीच की दीवार जो पड़ गयी

हो गये भेद अनेक

ऊंचे कुल के कारण से

दुनिया न दिखे एक

जब काया मिट्टी हो गयी

तब कुल कंहा रहे अनेक

कहें, ना  इत्तरा गर्व से

सबक ले जीवन से एक

जब तेरी नईया मझधार गयी

जाने क्या हो अनेक

सजन कुमार मुरारका

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