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Saturday, September 8, 2012

बदलाव सोच में


 बदलाव सोच में

बदलते समय के चाहत के घोड़े

सदीयों से सदीयों के अन्तराल में

नित्य नये आयाम की होड़ से

बदलते जा रहें हैं बेहिसाब हरपल

आधुनिकता की चादर ओढ़े

नई चाहत के नये समंतराल में

पीछे छोड़ पड़ाव, विक्षिप्त से

दौड़ रहें सुख के खोज में प्रतिपल

बदलती सदी के तीब्रतम कोड़े

गतिमय फटकार उखड़े सांसों में

ताल बिठाना मुस्किल तीब्रता से

बड़बड़ाता सा खींचता जीवन निष्फल

एक असमर्थ ख़्याल मन में जोढ़े

खुद को खुदा का दर्जा दिलाने में

जंग का ऐलान उसकी खुदाई से

स्वत: ही खींच रहें विनाश के हरपल

ऊष्मा प्रकृती की विध्वंस को दोड़े

बहुत ज़रूरी अब बदलाव  सोच में

धरती के स्निग्ध कोमल स्पर्श से

पकड़ बनाये जैसे माँ का स्नेहिल आँचल

सजन कुमार मुरारका

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