बदलाव सोच में
बदलते समय के चाहत के घोड़े
सदीयों से सदीयों के अन्तराल में
नित्य नये आयाम की होड़ से
बदलते जा रहें हैं बेहिसाब हरपल
आधुनिकता की चादर ओढ़े
नई चाहत के नये समंतराल में
पीछे छोड़ पड़ाव, विक्षिप्त से
दौड़ रहें सुख के खोज में प्रतिपल
बदलती सदी के तीब्रतम कोड़े
गतिमय फटकार उखड़े सांसों में
ताल बिठाना मुस्किल तीब्रता से
बड़बड़ाता सा खींचता जीवन निष्फल
एक असमर्थ ख़्याल मन में जोढ़े
खुद को खुदा का दर्जा दिलाने में
जंग का ऐलान उसकी खुदाई से
स्वत: ही खींच रहें विनाश के हरपल
ऊष्मा प्रकृती की विध्वंस को दोड़े
बहुत ज़रूरी अब बदलाव सोच में
धरती के स्निग्ध कोमल स्पर्श से
पकड़ बनाये जैसे माँ का स्नेहिल आँचल
सजन कुमार मुरारका
सदीयों से सदीयों के अन्तराल में
नित्य नये आयाम की होड़ से
बदलते जा रहें हैं बेहिसाब हरपल
आधुनिकता की चादर ओढ़े
नई चाहत के नये समंतराल में
पीछे छोड़ पड़ाव, विक्षिप्त से
दौड़ रहें सुख के खोज में प्रतिपल
बदलती सदी के तीब्रतम कोड़े
गतिमय फटकार उखड़े सांसों में
ताल बिठाना मुस्किल तीब्रता से
बड़बड़ाता सा खींचता जीवन निष्फल
एक असमर्थ ख़्याल मन में जोढ़े
खुद को खुदा का दर्जा दिलाने में
जंग का ऐलान उसकी खुदाई से
स्वत: ही खींच रहें विनाश के हरपल
ऊष्मा प्रकृती की विध्वंस को दोड़े
बहुत ज़रूरी अब बदलाव सोच में
धरती के स्निग्ध कोमल स्पर्श से
पकड़ बनाये जैसे माँ का स्नेहिल आँचल
सजन कुमार मुरारका
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