(1)
एक रोटी कोई नहीं दे सका
उस मासूम बच्चे को
लेकिन, वह तस्वीर
लाखो में बिक गयी,
जिसमे रोटी
वो बच्चा उदास बैठा था (२)
जीवनका इम्तिहान आसान नहीं होता
बगैर संघर्ष कोई महान नहीं होता
जब तक ना पड़े हथोड़े की मार
पत्थर में से भी भगवन नहीं उभरता
(३)
शीशा और रिश्ता दोनों में
सिर्फ एक ही फर्क है
वैसे तो दोनों नाजुक होते है
शीशा "गलती" से टूटता है
और रिश्ता "गलतफहमियो" से
(४)
"जीभ पे लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है."
और" जीभ से लगी चोट कभी ठीक नहीं होती.."
(५)
आंसू के गिरने की आहट नहीं होती,
दिल के टूटने की आवाज़ नहीं होती
अगर होता खुदा को एहसास दर्द का,
तो उसे दर्द देने की आदत नहीं होती (६)
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब भूलना चाहोगे तो पहले याद करना होगा .
(७)
उम्र भर माँगते रहे जिसके लिए दुआ हम
वही आज पूछते मुझसे,हम तुम्हार हैं कौन ? (८)
गर चल पड़ा हूँ मैं तो
ठोकरों की परवाह क्या करूं,
मंजिल ही इतनी हसीन है
(९) गिरने की परवाह क्या करूं ...
विडम्बना...मेरी बीवी
अपनी मर्ज़ी से मुझे जीने नहीं देती.
और..
करवा चौथ का व्रत रख कर मरने भी नहीं देती! . . .
(१०)
सवाल ये नहीं की क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है...
सवाल ये है की क्या मृत्यु तक आप जीवित हो ?
(११)
ज़रुरतके मुताबिक ज़िन्दगी जियो,
ख्वाइश के मुताबिक नहीं ;
ज़रूरत फकीर की भी पूरी हो जाती है,
और ख्वाइश बादशाह की भी कभी अधूरी रह जाती है .
(१२)
ज़रूरत तोड़ देती है गुरूर इंसान का,
ना होती कोई मज़बूरी तो हर बंदा ख़ुदा होता..!!
सजन कुमार मुरारका
एक रोटी कोई नहीं दे सका
उस मासूम बच्चे को
लेकिन, वह तस्वीर
लाखो में बिक गयी,
जिसमे रोटी
वो बच्चा उदास बैठा था (२)
जीवनका इम्तिहान आसान नहीं होता
बगैर संघर्ष कोई महान नहीं होता
जब तक ना पड़े हथोड़े की मार
पत्थर में से भी भगवन नहीं उभरता
(३)
शीशा और रिश्ता दोनों में
सिर्फ एक ही फर्क है
वैसे तो दोनों नाजुक होते है
शीशा "गलती" से टूटता है
और रिश्ता "गलतफहमियो" से
(४)
"जीभ पे लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है."
और" जीभ से लगी चोट कभी ठीक नहीं होती.."
(५)
आंसू के गिरने की आहट नहीं होती,
दिल के टूटने की आवाज़ नहीं होती
अगर होता खुदा को एहसास दर्द का,
तो उसे दर्द देने की आदत नहीं होती (६)
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब भूलना चाहोगे तो पहले याद करना होगा .
(७)
उम्र भर माँगते रहे जिसके लिए दुआ हम
वही आज पूछते मुझसे,हम तुम्हार हैं कौन ? (८)
गर चल पड़ा हूँ मैं तो
ठोकरों की परवाह क्या करूं,
मंजिल ही इतनी हसीन है
(९) गिरने की परवाह क्या करूं ...
विडम्बना...मेरी बीवी
अपनी मर्ज़ी से मुझे जीने नहीं देती.
और..
करवा चौथ का व्रत रख कर मरने भी नहीं देती! . . .
(१०)
सवाल ये नहीं की क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है...
सवाल ये है की क्या मृत्यु तक आप जीवित हो ?
(११)
ज़रुरतके मुताबिक ज़िन्दगी जियो,
ख्वाइश के मुताबिक नहीं ;
ज़रूरत फकीर की भी पूरी हो जाती है,
और ख्वाइश बादशाह की भी कभी अधूरी रह जाती है .
(१२)
ज़रूरत तोड़ देती है गुरूर इंसान का,
ना होती कोई मज़बूरी तो हर बंदा ख़ुदा होता..!!
सजन कुमार मुरारका
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